Monday, August 13, 2012

दोस्त


ए दोस्त
जा रहे हो तुम
क्या एसे  ही चले जाओगे

सब आज तुमसे कुछ न कुछ कह रहें  हैं
बता रहें  हैं तुम्हें
कि  तुम उन्हें कितना याद आओगे

आज जब तुम जा रहे हो
और सब तुमसे दिल की बात कह रहें  हैं
मेरे पास तुमसे कुछ कहने के लिए है ही नहीं
क्या है ऐसा
जो मुझे शब्दों में कहना पड़े कि तुम समझ जाओ?

तुम तो जा रहे हो
पर लग ही नहीं रहा मुझे ऐसा
बदला ही क्या है अभी यहाँ

पर अब ज़रूर कम हो जायेंगे थोड़े ठहाके
रूठना मनाना और छेड़खानी ज़रा फ़ीकी लगेगी
पता नहीं इतनी परवाह भी अब कौन करेगा मेरी

सन्डे के दिन जब बोरियत हो तो नहीं होगी अब लड़ाई
और रातों को भी सोने से पहले नहीं कह सकूंगी
"पानी दा रंग" गाना बजाने के लिए
और हर मुश्किल में पता नहीं
अब किसे करना होगा याद

कहीं एक कोना ऐसा भी होगा
जहाँ से निकलते हुए हर रोज़ जायेगी नज़र
पर नहीं होगे वहाँ तुम
क्यूंकि जा रहे हो तुम

सोच रही हूँ क्या कहूँ क्या नहीं
कुछ बातें शायद कह देने से कम हो जायें
मुझे पता है तुम समझते हो उन्हें

मैं लिखे जा रही हूँ
पर अभी भी लग नहीं रहा
कि सच में जा रहे हो तुम
अब शायद कल जब नहीं होगे तुम
तब लगेगा कि तुम चले गए हो
तुम्हारी बड़ी याद आयेगी
वापिस जल्दी आना लौटके ..