मेरा कहा मान मुझे याद न कर
हर पहर मेरी फ़रियाद न कर
काम बहुत हैं दुनिया में इश्क़ के सिवा
आशिकी में शामें यूं बर्बाद न कर
बड़ी मिन्नत से मिलता है रूह को सुकूँ
इन फ़िज़ूल की बातों पर फ़साद न कर
अरसे बाद भरे हैं जो ज़ख्म पुराने
और नये ग़म अब ईज़ाद न कर
फाँसले बहुत हैं ख़्वाब औ' हक़ीक़त में
कामिल न हो ऐसी मुराद न कर