तेरे इंतज़ार में वो, रात कल सोई नहीं
शमा पिघलती रही पर, आँख बस रोई नहीं
क्या मुनासिब है जो इतना, हो सितम उसपे अभी
क्यूं मिले उसको सज़ा, जब बीज वो बोई नहीं
ढूंढता है कौन क्या कब, किसे है मालूम वो
हर गली कूंचे में देखा, उसने पाया कोई नहीं