Sunday, November 27, 2011

दो पल


कितने दिन हो गए हैं
चैन से बैठी नहीं दो पल को
खुद से करने के लिए दो बातें,
पता नहीं ज़िन्दगी की किस उधेड़-बुन में
निकल गए कितने दिन
और कितनी रातें.

आइना तो आजकल रोज़ देखती हूँ
पर खुद को देखे हुए
एक अरसा हो गया है.
कभी याद आता है अपना
सिसकियों से भरा चेहरा,
तब कितना वक़्त मिल जाता था मुझे
अपने गम को आंसुओं के साथ बाँटने के लिए.
अब तो मैं मशीन की तरह
चले जा रही हूँ
क्या सच में जीना भूल गई हूँ मैं?

बहुत दिनों से दिल खोल के
एक ठहाका भी नहीं मारा है मैंने.
कहाँ चले गए हैं मेरे सारे दोस्त,
ज़रूरत है मुझे उनकी
सपनों की उड़ाने भरनी हैं उनके साथ.

कितनी अकेली हो गई हूँ मैं
पर दो पल फ़िर भी नहीं मिलते
कभी खुद से बात करने के लिए.
सोचा, चलो आज क्यूँ न सही
लेकिन उफ़, कितना अच्छा होता गर
साए से साथ छुड़ाना भी मुमकिन होता.
खैर, तलाश अभी भी ज़ारी है...

8 comments:

  1. lonely but couldn't get time to look into self,

    कितनी अकेली हो गई हूँ मैं
    पर दो पल फ़िर भी नहीं मिलते
    कभी खुद से बात करने के लिए.

    should I call this an oxymoron in hindi.???
    Poetry brings out the deep thoughts inside, doesn't it? feels good to read your work again.

    couldn't understand d last few lines about saaya.!!

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  2. Thanks Anurag :)
    When I thought I should spend time with myself right now, something disturbed me again.. and then I had the wish, if I could get rid of even my own shadow.. (wishing so, so that nothing in the world could disturb me)

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  3. wow! this poem is really good. its very rare that i get to see the rhetoric forms used in this way with words. Any more poems coming up soon?

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  4. Thanks a lot Maverick :)
    And for more, just keep visiting :)

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  5. beautiful, seems that you are not blogging since last few months, take some time out and share the beautiful thoughts of your beautiful mind, its delightful to read you.

    nice blog *following*

    http://cerebralrendezvous.blogspot.com/

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  6. अब तो मैं मशीन की तरह
    चले जा रही हूँ
    क्या सच में जीना भूल गई हूँ मैं?

    Same seems to be the everyone's story especially in corporate jobs...We all are working like machines...We hardly get to see the sun or enjoy nature....We are forgetting our family, friends & relationships are tearing apart.....I hope the things will change for the betterment...keep writing...:-)

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