Sunday, August 30, 2015

कब तक


कब तक खयालों से, कल्पनाओं से, दिल बहलाऊँ,
जो हकीकत का स्वरूप है, उसे कहाँ से लाऊँ।
बातें तो बहुत हैं, दुनिया की, चाँद-तारों की,
मेरे हाथों की लकीरें, पर तुम्हे कैसे दिखाऊँ।
हाथ छूते ही, बुलबुला है, धुएँ सा फट जाता है,
धुंध में सिर्फ तुम दिखो, तो तुम्हे कैसे छिपाऊँ।
साथ तो हर वक़्त हो, यादों में, तस्वीरों में,
चाहूँ भी तो लेकिन, बस गले कैसे लगाऊँ।
आस है, कि पास हो बस, तकती रहूँ रात-दिन,
जो नहीं समझते तुम, वो तुम्हे कैसे बताऊँ।

No comments:

Post a Comment

Be it a Compliment or a Critique, Feel Free to Comment!