उसे सिगरेट की लत थी
और मुझे उसकी
दोनों ही जलते थे
दोनों ही जलाते थे
वो जो सुकून
धुएँ में खोजता था
मैं उसके होने और न होने के
शोर में
धुआँ उसे मदद करता था
अपना आस पास भूल जाने में
शोर मुझे मदद करता था
अपना आस पास समझ आने में
जानते हम दोनों थे
कि जल ही रहे हैं
घड़ी दर घड़ी
पिघल ही रहे हैं
हर शाम वो मुझसे कहता था
कि बस अब ये आख़िरी है
हर रात मैं ख़ुद से कहती थी
कि बस अब ये आख़िरी है
पर सुबह फ़िर हो जाती थी
तलब फ़िर मच जाती थी
वो जलाता था सिगरेट को फ़िर
मैं जलाती थी अपने दिल को फ़िर
छोड़ना वो भी चाहता था
और मैं भी
छोड़ वो भी नहीं पा रहा था
और मैं भी