Monday, December 31, 2018

लत


उसे सिगरेट की लत थी
और मुझे उसकी
दोनों ही जलते थे
दोनों ही जलाते थे

वो जो सुकून
धुएँ में खोजता था
मैं उसके होने और न होने के
शोर में

धुआँ उसे मदद करता था
अपना आस पास भूल जाने में
शोर मुझे मदद करता था
अपना आस पास समझ आने में

जानते हम दोनों थे
कि जल ही रहे हैं
घड़ी दर घड़ी
पिघल ही रहे हैं

हर शाम वो मुझसे कहता था
कि बस अब ये आख़िरी है
हर रात मैं ख़ुद से कहती थी
कि बस अब ये आख़िरी है

पर सुबह फ़िर हो जाती थी
तलब फ़िर मच जाती थी
वो जलाता था सिगरेट को फ़िर
मैं जलाती थी अपने दिल को फ़िर

छोड़ना वो भी चाहता था
और मैं भी
छोड़ वो भी नहीं पा रहा था
और मैं भी

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