Tuesday, November 26, 2019

हर बात की वज़ह


हर बात की कोई वज़ह हो, ये जरुरी तो नहीं 
अगर कह के भी अनकही रह जाये, तो अधूरी तो नहीं 
खामोशियों को भी जब, मिलने लगे जुबाँ 
तो अल्फ़ाज़ों की कैसी कोई, मजबूरी तो नहीं 
कोशिशों के समंदर में, उम्मीद की नाव है 
जो पार लग जाये, फिर दूरी तो नहीं 

Sunday, November 17, 2019

सब कुछ तो है


सब कुछ तो है, पर न जाने क्यूं फिर भी, एक कमी सी है 
लबों पे मुस्कान, पर आंखों में फिर भी, एक नमी सी है 
दूर निकल आये, चलते चलते यूं ही, कि भूल गए मंज़िल 
देखें तो सही, कि राहें ये सारी, क्यूं थमी सी हैं
पिघलती हैं सांसें, घड़ी दर घड़ी, वक्त रुकता नहीं 
पर यादें ही हैं, न जाने क्यूं कमबख़्त, जमी सी हैं

Tuesday, November 12, 2019

कितने दफ़े


कितने दफ़े सोचते हैं
उन तमाम सारी बातों को
जो करनी हैं आपसे
पर कभी समझ नहीं आता
कि शुरू कहाँ से करें
कभी सोचते हैं ख़त लिख दें
कई बार लिखना कह पाने से
ज़्यादा आसान जो लगता है
पर फ़िर सहम जाते हैं
न जाने क्यूँ
सवाल और ख़याल कुलबुलाते रहते हैं
मुझे मालूम नहीं ये थोड़ा डर है या कोई झिझक
पर कभी कभी शब्द यूंही थम जाते हैं
कभी सोचते हैं कि आप क्या सोचते होंगे
क्या आपके भी दिल-ओ-दिमाग में
ऐसे ही उथल-पुथल होती है
क्या आप भी वह कह नहीं पाते
जो कहना चाहते हैं
क्या आपको भी कभी किसी अनजान बात का
डर लगता है
आपके सपने क्या हैं
आपकी चाहत क्या है
आपके दर्द क्या हैं
आपकी राहत क्या है
कितना कुछ जानना है
कितना कुछ बताना है
कितनी सारी बातें हैं
पर कभी समझ ही नहीं आता
कि शुरू कहाँ से करें
कभी सोचते हैं खत लिख दें
शायद ये एक ख़त ही तो है
कितनी सारी बातें हैं
जो करनी हैं आपसे
आना आप कभी फुरसत से
ज़िंदगी भर का वक़्त लेके