सब कुछ तो है, पर न जाने क्यूं फिर भी, एक कमी सी है
लबों पे मुस्कान, पर आंखों में फिर भी, एक नमी सी है
दूर निकल आये, चलते चलते यूं ही, कि भूल गए मंज़िल
देखें तो सही, कि राहें ये सारी, क्यूं थमी सी हैं
पिघलती हैं सांसें, घड़ी दर घड़ी, वक्त रुकता नहीं
पर यादें ही हैं, न जाने क्यूं कमबख़्त, जमी सी हैं
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