Sunday, December 8, 2013

कोरा कागज़


एक कोरे कागज़ का एकाकीपन 
बस वही चाहिये 
एक नयी नज़्म लिखने के लिये।

लिखना तो और भी बहुत है 
कुछ सपनें, कुछ अरमान,
कुछ चाहत, औ कुछ दुयाएँ,
पर कोरा कागज़ नहीं बचा। 

सबमें एक मिलावट आ गयी है,
खयालों में, औ सवालों में भी,
सब मिलावट के साथ ही
कागज़ पर बिखरे पड़े हैं। 

कुछ कागज़ों पर से निशाँ 
मिटा नहीं सकते हम 
और कोरा कागज़... वो कहीं नहीं है।  

No comments:

Post a Comment

Be it a Compliment or a Critique, Feel Free to Comment!