कभी कभी लगता है
कुछ तोड़ दिया है मैंने
जाने या अनजाने में
या छीन लिया
कभी लगता है
थोपी जा रही हूँ
कभी लगता है
दूर भाग रही हूँ
जैसे जो होना था
वैसा कुछ भी नहीं हुआ
पर फ़िर भी पता नहीं
हुआ तो क्या हुआ
क्यूँ हुआ
उसका तो कोई ज़वाब नहीं है
पर सच में
कुछ तोड़ना नहीं था मुझे
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