Monday, December 23, 2019

माना ज़रा


माना ज़रा कम आप बोलते हो 
एहसासों को लफ़्ज़ों में नहीं तोलते हो 
पर हमें तो रहता है इन्तेज़ार फ़िर भी 
राज़ अपने दिल के क्यूँ नहीं खोलते हो 
हम तो बादल में बैठे हैं मज़े में 
आप जाने जमीं पर क्या टटोलते हो 
दुनिया रह जायेगी, साथ होगा हमसफ़र 
इश्क़ को जो कोई दौलतों से मोलते हो 
गुल कई होंगे गुलशन में मगर 
इस गुल में खुशबू आप घोलते हो 

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