Tuesday, November 29, 2016

ज़िन्दगी बीत गई है...


ज़िन्दगी बीत गई है, मंज़िलों को ख़ोजते हुए,
आज मुझे कहीं किसी राह में ही खोने दे। 

कितनी रातें हो गई हैं, करवटें बदलते हुए,
आज मुझे एक हसीन ख़्वाब की ख़ातिर सोने दे। 

जमाने को हँसाने के लिए, मैं ता-उम्र जोकर बना,
आज अपने ग़म-ओ-दर्द में डूब के रोने दे।

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